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28 Eylül 2018 Cuma

एक से डेढ़ लाख में लड़कियां बिकती हैं, प्रभा मुनि की गिरफ्तारी से धंधेबाजों में हड़कंप

{content: माता-पिता को 10-20 हजार का अग्रिम नकद भुगतान, बेटी को दिल्ली या देश के किसी अन्य हिस्से में अच्छी नौकरी, माहवारी 10 से 15 हजार का पेमेंट व शानो-शौकत की जिंदगी। इसी सपने का सब्जबाग दिखा, झारखंड के 250 से अधिक दलाल सूबे के आदिवासी बहुल जिलों के सुदूर गांवों की हर साल औसतन 10 हजार से अधिक लड़कियों का सौदा कर रहे हैं। इन दलालों का काम है, उन गरीब माता-पिता को ढूंढना, जिनकी बेटियों की उम्र 10 से 18 साल के बीच हो। फिर मायाजाल बिछा माता-पिता को तैयार करना और लड़कियों को दिल्ली ले जाकर प्लेसमेंट एजेंसियों के हवाले कर देना। इस काम के बदले दलाल को प्रति लड़की 50 हजार तक मिल जाते हैं। फिर प्लेसमेंट एजेंसियां इन लड़कियों को दिल्ली समेत देश के विभिन्न इलाकों में ग्राहकों को हैसियत के अनुसार एक से ढाई लाख रुपए तक बेच देते हैं। इन एजेंसियों के अधिकतर संचालक झारखंड के दलालों की प|ियां और रिश्तेदार हैं।

आदिवासी बहुल गांवों की बिक रहीं लड़कियों और फिर दलाल व दिल्ली की प्लेसमेंट एजेंसियों के गठजोड़ की पूरी जानकारी सीआईडी को है। सीआईडी के पास दिल्ली में काम कर रही ऐसी 240 प्लेसमेंट एजेंसियों के नाम-पते हैं, जो झारखंडी लड़कियों को बतौर नौकरानी दिल्ली समेत अन्य राज्यों के लोगों के हवाले कर मोटा मुनाफा कमा रही हैं। अब लड़कियों की तस्करी की किंगपिन बताई जा रही प्रभा मिंज मुनि झारखंड पुलिस के शिकंजे में है। सिमडेगा पुलिस ने उससे तस्करी से जुड़े दर्जनों सवाल किए। उसे जेल भेजने के बाद रिमांड पर लेकर फिर पूछताछ की तैयारी है। उसके पति रोहित मुनि की भी सरगर्मी की तलाश है, जिसे भी पुलिस लड़कियों की मुख्य तस्कर मान रही है।

दिल्ली की इन प्लेसमेंट एजेंसियां के खिलाफ सीआईडी कर रही जांच

संपूर्ण घरेलू कामगार संस्थान, झारखंड पर्सनल प्लेसमेंट एजेंसी, आदिवासी उत्थान मंच, सर्वोदय आदिवासी जन संस्थान, नेशनल सेवा संस्थान, सेवा भारती, बीआरजी प्लेसमेंट एजेंसी, मैरी प्लेसमेंट एजेंसी, त्यागी प्लेसमेंट एजेंसी, गायत्री इंटरप्राइजेज, कृष्णा इंटरप्राइजेज, घरेलू कामगार सर्व उत्थान समिति, स्पीड इंटरप्राइजेज, महिला सेवा समिति, नित्यपाल प्लेसमेंट एजेंसी, केके प्लेसमेंट एजेंसी और नव गरीब जनता कल्याण विकास समिति। (सीआईडी के पास दिल्ली में घरेलू नौकरी आपूर्ति करने वाली उपरोक्त समेत 240 एजेंसियों के नाम हैं।)

ये हैं बच्चियों का सौदा करने वाले झारखंड के सबसे बड़े दलाल

जीतनी : गुमला के घाघरा थाना क्षेत्र निवासी। पुलिस ने कई लड़कियों को दिल्ली में बिकने से बचाया। उनके स्वीकारोक्ति बयान में जीतनी का नाम आया। यह महिला हरियाणा की प्लेसमेंट एजेंसियों के लिए ट्रैफिकर का काम करती है। पोको मौसी : गुमला के भरनो थाना क्षेत्र निवासी। नेपाली उरांव : सिमडेगा। अफरोज : पाकुड़। बबलू खान : पाकुड़। सुनीता तिग्गा : मांडर। सुरेश साहू : दिल्ली। वाहन बड़ाइक : सिमडेगा। शिवाराम : गुमला। रोहित मुनि : बिहार। इसके अलावा वामदेव, लता लकड़ा, जीत तिर्की, बिंद कुमार, अरुण उरांव, बलराम, दिलीप मंडल, कृष्णा कुमार, मनीराज कौशिक, मीना मिंज यादव, सरिता कुजूर, सुनील सोरेन, नित्यपाल, सुरेंद्र गर्ग, निर्मल महतो, देवेंद्र साहू, सुषमा तिड़ू, सुंदर मुंडा। (इन सभी के नाम सीआईडी के पास है।)

मानव तस्करी के केस : गुमला जिले में सबसे ज्यादा

जिला एफआईआर चार्जशीट दायर एफआरटी पेंडिंग केस गिरफ्तार

गुमला 241 43 31 167 70

दुमका 19 7 7 5 12

सिमडेगा 98 43 4 51 57

रांची 22 6 4 12 13

चाईबासा 36 16 5 15 9

लोहरदगा 47 19 1 27 29

(आंकड़ा 2013 से मार्च 2018 तक)

बाहर ले जाने वाली लड़कियों के वेरीफिकेशन की ठोस व्यवस्था नहीं

जिन लड़कियों को प्रदेश के बाहर ले जाया जाता है, उनके वेरीफिकेशन की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। श्रम विभाग का कानून है कि अभिभावक की सहमति से किसी भी नाबालिग को नौकरी के लिए दूसरे प्रदेश में नहीं ले जाया सकता। निगरानी थानेदार के साथ श्रम विभाग के ईएलओ और बीडीओ-सीओ को करना है, परंतु ऐसा नहीं होता।

25 सितंबर को ेरेस्क्यू कर नाबालिग 15 लड़कियां व एक लड़के को दिल्ली से रांची लाया गया था।

इन जिलों की लड़कियों की होती है सबसे ज्यादा खरीदारी : झारखंड में बिकने वाली ज्यादातर लड़कियां रांची, खूंटी, दुमका, सिमडेगा, गुमला, चाईबासा, लोहरदगा और पलामू की होती हैं। इनमें से सबसे अधिक गुमला जिला के सीलम, डुमरी, चैनपुर, रायडीह, मांझीटोली, नागपुर, तेताटोली, कुकुडीह टोली, बगमा की होती हैं। रांची के लापुंग और मांडर की लड़कियों की संख्या में अच्छी-खासी होती है। पश्चिम सिंहभूम के सोनुवा, गायकेरा, मनोहरपुर थाना क्षेत्र की लड़कियां भी सबसे ज्यादा बिकती हैं।

अधिकतर ट्रैफिकिंग स्टेशन से, रेलवे को भी जिम्मेवार बनना होगा

यूएनओ की रिपोर्ट में झारखंड से तस्करी हुई बच्चियों में 78% आदिवासी बताई गईं, परंतु ह्यूमन ट्रैफिकिंग रोकने के लिए सरकार व एजेंसियां ठोस कदम नहीं उठा रहीं। अधिकतर ट्रैफिकिंग स्टेशन से हो रही है। ऐसे में रेल पुलिस समेत रेलवे को भी जिम्मेवार बनना होगा। -मगधेश कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता

बिकने से पूर्व दिल्ली की इन बस्तियों में रहती हैं लड़कियां : झारखंड से ट्रेन समेत अन्य माध्यम से दिल्ली लाने और उसे प्लेसमेंट एजेंसियों के हवाले करने के बाद दलाल अपनी फीस लेकर लौट आते हैं। इसके बाद एजेंसियां इन लड़कियों को दिल्ली के शकरपुर, नरेला, प्रीतमपुरा, विकासपुरी, उत्तम नगर, संगम विहार, कुसुमपुर पहाड़ी समेत अन्य इलाकों में बनाए स्थानों पर रखती हैं। जब लड़कियां बिक जाती हैं तो उसे खरीदार ग्राहक के साथ भेज दिया जाता है।

एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट करती है कार्रवाई

मानव तस्करी रोकने के लिए सीआईडी की एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की स्थापना हुई है। जहां भी लड़के-लड़कियों की खरीद-बिक्री की सूचना मिलती है, यूनिट फौरन एक्शन में आ जाती है। बरामदगी और दलालों की धरपकड़ होती है। प्राथमिकी दर्ज की जाती है। ट्रैफिकिंग रोकने के लिए एनजीओ की भी मदद ली जा रही है। इस धंधे में शामिल कई दलालों और संगठनों की जानकारी विभिन्न स्रोतों से मिली है। उनके खिलाफ कार्रवाई का निर्देश जारी किया गया है। -अरुण कुमार सिंह, आईजी, सीआईडी



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Ranchi - एक से डेढ़ लाख में लड़कियां बिकती हैं, प्रभा मुनि की गिरफ्तारी से धंधेबाजों में हड़कंप
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