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20 Kasım 2018 Salı

बकोरिया मुठभेड़ मामले में सीबीआई स्पेशल क्राइम ब्रांच ने दर्ज किया एफआईआर

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रांची. सीबीआई स्पेशल क्राईम ब्रांच-एक, नई दिल्ली ने बकाेरिया कांड को लेकर 19 नवंबर को एफआईआर दर्ज कर लिया। लंबे समय तक चले सुनवाई के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने 23 अक्टूबर को मामले को फर्जी बताने वाली जवाहर यादव की याचिका पर फैसला सुनाते हुए जांच सीबीआई को सौंप दी थी। पलामू के सतबरवा ओपी के बकोरिया गांव में 8 जून 2015 की रात पुलिस की गोली से पांच नाबालिग सहित 12 लोग मारे गए थे।

  1. छह माह पूर्व मई में कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। फैसला सुनाते वक्त जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की कोर्ट ने कहा था कि इस मुठभेड़ में 12 लोग मारे गए थे। पुलिस और सीआईडी की जांच में अलग-अलग तथ्य आए। पुलिस अधिकारी हरीश पाठक के बयान भी अलग हैं। ऐसे में पुलिस की जांच पर संदेह होता है। इसलिए न्यायहित में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी जाती है।

  2. याचिकाकर्ता जवाहर यादव ने कोर्ट को बताया था कि उनके पारा शिक्षक पुत्र उदय यादव व एक रिश्तेदार नीरज यादव को कुछ लोग 8 जून 2015 की रात घर से जबरन उठाकर ले गए थे। 10 जून को उनकी हत्या की सूचना मिली। 10 अन्य लोग भी मारे गए थे। सीआईडी ने ढाई साल बाद मृतकों की शिनाख्त की थी। इनमें दो माओवादी जोनल कमांडर देवराज यादव उर्फ डॉक्टर उर्फ अनुरागजी और अमलेश की क्रिमिनल हिस्ट्री थी। वहीं 10 अन्य को एक संगठन की ओर से जारी विज्ञप्ति के आधार पर नक्सली बताया गया था।

  3. सतबरवा ओपी प्रभारी मो. रुस्तम ने 9 जून 2015 को एफआईआर (349/15) दर्ज कराई थी। कहा था कि 8 जून की रात 9:40 बजे सूचना मिली कि माओवादियों का दस्ता मनिका सतबरवा क्षेत्र से गुजरने वाला है। रात 10 बजे वह एनएच-75 पर पहुंचे। कोबरा बटालियन के साथ मिल चेकिंग शुरू की। इसी समय स्कॉर्पियों से आए नक्सलियों से मुठभेड़ हुई। 12 मारे गए।

  4. याचिकाकर्ता के वकील आरएस मजूमदार ने कोर्ट में कहा कि पुलिस ने इनकी हत्या की है। मामले को दबा रही है। सवाल उठाए कि मौके पर या जब्त वाहन पर खून के निशान नहीं थे? मुठभेड़ के बाद सभी शव एक लाइन में कैसे आए? थानेदार हरीश पाठक मौके पर थे, पर उनका बयान नहीं लिया? एडीजी एमवी राव ने कहा कि डीजीपी ने जांच धीमी करने को कहा?

    • दैनिक भास्कर ने 13 जनवरी और 23 जनवरी के अंक में बकोरिया कांड में यह चौंकाने वाला खुलासा किया था।

    महाधिवक्ता से दो सवाल

    • कोर्ट में एजी ऑफिस से कोई क्यों नहीं दिखा?

    -बकोरिया समेत कुछ अन्य मामलों के लिए विशेष अधिवक्ता की नियुक्ति हुई थी, वरीय अधिवक्ता राजीव रंजन मामले की पैरवी कर रहे थे, मैं दूसरे मामले में व्यस्त था।

    • क्या सरकार को एजी ऑफिस पर भरोसा नहीं?

    -ऐसा नहीं है। डीजीपी चाहते थे इसलिए तो अधिवक्ता की नियुक्ति का निर्णय लिया गया। पर नियुक्ति के साथ ही विशेष अधिवक्ता एजी ऑफिस के अधीन हो गए, इसमें कोई बात नहीं।

  5. मुठभेड़ के बाद से ही पुलिस की भूमिका पर सवाल उठने लगे थे। पीड़ित इसे फर्जी बता रह थे। जब मीडिया ने सवाल उठाने शुरू किए तो पुलिस ने इसे सही साबित करने की दलीले दीं। मृतकों को नक्सली बताया। पर तथ्यों से ताल-मेल नहीं जुड़ा। मारे गए नाबालिगों को भी नक्सली करार दिया गया। इस साल यह मामला तब तूल पकड़ा, जब सीआईडी के एडीजी एमवी राव ने 1 जनवरी को गृह विभाग को पत्र लिख कहा कि बकोरिया कांड की जांच धीमी करने के लिए डीजीपी डीके पांडेय ने दबाव डाला। इसी बीच 13 दिसम्बर 2017 को एडीजी एमवी राव का तबादला दिल्ली कर दिया गया। इसी मामले में डीजपी पर कार्रवाई की मांग को लेकर िपछला विधानसभा सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया।

    • मारे गए 10 लोगों को एक विज्ञाप्ति के आधार पर नक्सली करार दे दिया गया।
    • घटना को समझे बिना दूसरे ही िदन हेलिकॉप्टर से घटनास्थल पर पहुंच डीजीपी ने मुठभेड़ में शामिल पुलिसकर्मियों की हौसला अफजाई की।
    • बकोरिया कांड में जांच को गति देने वाले अफसर बदल दिए गए। एडीजी एमवी राव ने इस बारे में सरकार को पत्र भी लिखा।
    • सीआईडी के तत्कालीन एडीजी अजय भटनागर और अजय कुमार सिंह के कार्यकाल में जांच आगे नहीं बढ़ी।
    • जब अजय कुमार सिंह सीआईडी के दोबारा एडीजी बने तो जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट में सौंप दी।
    • सीआईडी के तत्कालीन एडीजी रेजी डुंगडुंग और प्रशांत सिंह के कार्यकाल में जांच में तेजी नहीं आई।
    • मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाले पलामू के तत्कालीन डीआईजी हेमंत टोप्पो का तबादला कर दिया गया।
    • इसी तरह पलामू के सतबरवा के थानेदार हरीश पाठक को भी बदल दिया।
    • कांड के बारे में इलाके के थानेदार तक को कुछ पता नहीं चलने दिया गया।
  6. 25, 27 मई और तीन जून 2015 को आईबी ने 14 नक्सलियों के मोबाइल लोकेशन को लातेहार जिले के बार्डर पर ट्रैप किया। सूचना सीआरपीएफ को दी। सीआरपीएफ के कोबरा 209 के कमांडेंट ने टीम बनाकर ऑपरेशन शुरू किया। आठ जून की रात पलामू एसपी ने सतबरवा ओपी इनचार्ज को लातेहार पलामू हाइवे पर नक्सलियों के जाने की सूचना दी तथा कोबरा बटालियन को सहयोग करने का निर्देश दिया। मुठभेड़ के बाद देर रात एक बजे पलामू आईजी, एसपी, जोनल आईजी पलामू, कोबरा के सीओ एसपी लातेहार पहुंचे। मौके से बारह शव और आठ हथियार मिले। शवों की जांच में उसके हाथ में विस्फोटक के सुराग मिले थे। पोस्टमार्टम 10 जून को हुआ।



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      नक्सली संगठनों की विज्ञप्ति के आधार पर CID ने 11 मृतकों को बताया था नक्सली।
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1 yorum:

  1. इस लेख को बनाने के लिए धन्यवाद, इससे हमें बहुत कुछ सीखा है। यह जानकारीपूर्ण और ज्ञानवर्धक है। इस बीच, यदि आप सर्वोत्तम सीआईडी और सीबीआई के बीच अन्तर के बारे में जानने चाहते है तो यहां जाएं। धन्यवाद और आप पर भगवान की कृपा हो!

    YanıtlaSil

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