रांची. लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए झारखंड में सीटें बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती है तो झामुमो के लिए सीटों की संख्या में वृद्धि। वर्ष 2000 में अलग राज्य बनने के बाद से हुए अब तक के चुनाव में भाजपा ने 2014 के चुनाव में ही सबसे अधिक 12 सीटें जीतीं। वहीं, झामुमो के खाते में दो सीटें गई थीं। अब 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए इन 12 सीटों को ही बरकरार रखने की पहली चुनौती सामने है। यह अलग बात है कि भाजपा इस चुनाव में सीटों की संख्या बढ़ाकर 14 करने का दावा करती है तो झामुमो को दो सीटों से बढ़कर चार होने का भरोसा है। इससे इतर कांग्रेस, झाविमो और राजद को चुनावी जंग में हासिल होनेवाली सभी सीटें लाभकारी होंगी। हालांकि सभी दलों के अपने-अपने दावे हैं अौर चुनाव प्रचार के दौरान सियासी गणित को बदलने का प्रयास भी कर रहे हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम का आकलन करें तो भाजपा और झामुमो ने सभी 14 सीटों को आपस में बांट लिया था। कांग्रेस, झाविमो और राजद को एक भी सीट नहीं मिली थीं। इस बार उत्साहित कांग्रेस सात, झाविमो दो और राजद भी दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। इन दलों ने जितनी भी सीटें जीतीं, वह उनके खाते में प्लस होगा।
1996 के चुनाव में भाजपा ने 14 सीटों में 13 सीटें जीत कर रिकार्ड प्रदर्शन किया था। उसी तरह 1998 के चुनाव में भी भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा और उसने 12 सीटें जीतीं। 1999 में भी भाजपा ने अपने प्रदर्शन को दुहराया और उसके खाते में 11 सीटें आईं।
झारखंड अलग होने के बाद 2004 के चुनाव में भाजपा को एक सीट मिली। बाबूलाल मरांडी भाजपा के टिकट पर कोडरमा से जीते थे। 13 सीटें विपक्ष के खाते में गईं। 2009 के चुनाव में भाजपा की सीटें बढ़कर सात हो गईं। इस चुनाव में सात सीटें विपक्षी दलों के खाते में गईं। 2014 के चुनाव में भाजपा ने अपनी सीटें बढ़ाकर 12 कर लीं।
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