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21 Temmuz 2018 Cumartesi

मां के बिछुड़ने का दर्द भुलाने गाने लगे गीत, आज भजन गायक के तौर पर हैं मशहूर

{content: . जब रमेश तिवारी महज तीन साल के थे उनकी मां कांति देवी का देहांत हो गया। छोटा भाई ब्रजेश तो और भी छोटा था। बड़े भाई सुनील तिवारी सिर्फ इन दोनों से कुछ साल बड़े थे। रहना तब चतरा की मिसरोल पंचायत, टंडवा के एक गांव में होता था। आय का साधन खेतीबाड़ी। पिता सच्चिदानंद तिवारी जब खेत पर जाते, तो दोनों छोटे बच्चे को कंधे पर बारी-बारी से संभालते। खेत जोतते हुए कोई न कोई दर्दभरा गीत गुनगुनाते रहते। कानों में उसका सुरीलापन रमेश को भाता और यह बच्चा भी जब अकेले में होता उसे दोहराया करता। धीरे-धीरे उसकी रुचि बढ़ने लगी। मां के बिछुड़ने का दर्द वो गीत गाकर भुलाने का प्रयास करता। इस दर्द ने ही उसे गायक बना दिया।

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